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Blog / 19 Nov 2019

(आर्थिक मुद्दे) जीएसटी : समीक्षा और चुनौतियां (GST: Review and Challenges)

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(आर्थिक मुद्दे) जीएसटी : समीक्षा और चुनौतियां (GST: Review and Challenges)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): प्रोफेसर अरुण कुमार (लेखक "ग्राऊंड स्कोर्चिंग टैक्स - GST), सुभाष चंद्र पांडेय (पूर्व विशेष सचिव, केंद्रीय उद्योग मंत्रालय)

चर्चा में क्यों?

अक्तूबर 2019 में केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की व्यापक रूप से समीक्षा करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की। समिति का काम राजस्व संग्रह बढ़ाने समेत जीएसटी से जुड़े तमाम दूसरे मुद्दों पर सलाह देना है। इस समिति में 12 सदस्य शामिल हैं।

क्या है जीएसटी?

जीएसटी भारत में लागू एक अहम अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है, जिसे 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया था। इस कर व्यवस्था में केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा अलग अलग दरों पर लगाए जाने वाले तमाम करों को हटाकर पूरे देश के लिए एक ही अप्रत्‍यक्ष कर प्रणाली लागू की गई है। भारतीय संविधान में इस कर व्यवस्था को लागू करने के लिए 101वां संशोधन किया गया था। सरकार व कई अर्थशास्त्रियों ने इसे आज़ादी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया है।

क्या लाभ हैं जीएसटी लागू करने के?

सरकार के मुताबिक जीएसटी व्यवस्था के कई लाभ हैं मसलन

  • चूँकि जीएसटी को पूरी तरह कंप्यूटर आधारित व्यवस्था के जरिए लागू किया जाता है। ऐसे में, इससे आसान अनुपालन और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है।
  • कर दरों और संरचनाओं की एकरूपता।
  • करों पर कराधान (कैसकेडिंग इफेक्ट) की समाप्ति।
  • व्‍यापार करने में लेन-देन लागत घटने से व्‍यापार में होने वाले प्रतिस्‍पर्धा में सुधार को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, इसका लाभ निर्माताओं और निर्यातकों को भी मिलने की उम्मीद है।
  • उपभोक्ताओं के ऊपर पड़ने वाले कर भार में कमी आएगी। साथ ही, वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में भी कमी आएगी।

क्या मसले हैं मौजूदा जीएसटी व्यवस्था में?

मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में जीएसटी संग्रह की वृद्धि में क़रीब पांच फीसदी की कमी देखने को मिली है। जबकि जीएसटी संग्रह का लक्ष्य 13 फीसदी से ज्यादा का था। जीएसटी से उतनी राजस्व आय नहीं हो रही है, जितनी उम्मीद की जा रही थी।

  • जीएसटी को कर चोरी को रोकने के उपाय के तौर पर पेश किया जा रहा था, लेकिन मौजूदा जीएसटी व्यवस्था अपने इस लक्ष्य को पाने में आंशिक रूप से ही कामयाब हो पाई।
  • करदाताओं के बीच स्वैच्छिक अनुपालन की प्रवृत्ति आज भी पूरी तरीके से विकसित नहीं हो पाई है।
  • पर्याप्त कर आधार यानी टैक्सबेस में भी उम्मीदों के अनुरूप प्रसार नहीं हुआ।
  • जीएसटी के डिजाइन को लेकर आज भी सवाल उठते रहते हैं। जहां कुछ उत्पादों पर जीएसटी की रेट शून्य फ़ीसदी है, तो वहीं पर कुछ का 28 फ़ीसदी। हालांकि GST परिषद लागातार वर्तमान कर दरों को तर्कसंगत बनाने की दिशा में काम कर रही है।
  • साथ ही जीएसटी की फाइलिंग भी जटिल प्रक्रिया का शिकार है।

आगे क्या किया जाना चाहिए?

जीएसटी लागू होने के बाद जैसे-जैसे हम लोग इस दिशा में प्रगति करते गए जीएसटी की राह में आने वाली चुनौतियां भी उजागर होती गईं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा तमाम कदम भी उठाए गए, लेकिन अभी भी इस व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश नजर आ रही है।

  • अर्थव्यवस्था में आई मौजूदा मंदी के कारण भी जीएसटी संग्रह में कमी आई है इसलिए जीएसटी संग्रह से जुड़े उपायों पर काम करने के साथ-साथ मंदी दूर करने के उपायों पर भी विचार करना होगा।
  • रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया को भी आसान बनाया जाना चाहिए। ग़ौरतलब है कि कुल करदाता आधार में छोटे कारोबारियों की तादाद सबसे ज्यादा है। इस लिहाज से सरलीकरण बहुत जरूरी है।
  • साथ ही, जीएसटी काउंसिल को इनवॉइस मैचिंग और समय पर इनपुट टैक्स क्रेडिट से जुड़े नियमों को भी सरल बनाने चाहिए। इससे टैक्स कंप्लायंस आसान होगा, लिहाज़ा रिटर्न फाइल करने वाले कारोबारियों की संख्या बढ़ेगी। इस तरह सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी।
  • कराधान प्रणाली में तकनीकी बेहतरी से कर चोरी रोकने और आसान कर अनुपालन में मदद मिल सकती है।